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अठारहवां परिच्छेद।

मैं―पूजावाले दालान के पश्चिमोत्तर के कोने में।

वे―किस ने कन्यादान किया था?

मैं―इंदिरा के चाचा कृष्णमोहनदत्त ने।

वे―औरतों के आचार के समय किसी एक स्त्री ने बड़े ज़ोर से मेरा कान माल दिया था, उस का नाम मुझे याद है। भला, तुम बतलाओ तो सही कि उस औरत का क्या नाम है?

मैं―उन का नाम विंदवासिनी ठकुरानी है। उन के बड़े बड़े नैन, लाल लाल ओठ थे और उनकी नाक में उस समय लटकनदार नथ थी।

वे―ठीक है। इस से जान पड़ता है कि तुम इंदिरा के विवाह के दिन यहां पर उपस्थित थी। क्या तुम उन की नातेहार तो नहीं हो?

मैं―मैं उन की जाति की लड़की हूं या किसी मजदूरनी या रसोईदारिन की लड़की हूं। बस इस तरह की बातों को न पूछिये।

वे―अच्छा, इंदिरा का विवाह कब हुआ था?

मैं―“साल के बैशाख मास की २७ वी तारोख को तिथि शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी थी।”

यह सुन कर वे चुप हो गये, फिर थोड़ो देर पीछे बोले―’अच्छा प्यारी! मुझे ज़रा तुम अभयदान करो तो मैं और दो एक बातें पूछू?”

मैं―मैं अभयदान करती हूं, पूछिये।

वे―कोहबर घर में से सब के उठ जाने पर मैंने अकेले में इंदिरा से एक बात कही थी, और उसने भी उस बात को