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इन्दिरा

पर चाचा का पता अवश्य लग जायगा, तब वे मुझे अवश्य ही नैहर भेज देंगे, या मेरे पिता को संवाद देंगे।

मैं ने यह रात ब्राह्मण को बताई। वे बोले कि―“यह उत्तम विचार किया है। बाबू कृष्णदास बसु मेरे यजमान हैं, सो मैं तुम्हे संग लेजाकर उन से रहे कह आऊंगा। वे वृद्ध हैं, और बड़े भले आदमी हैं।"

ब्राह्मण मुझे बाबू कृष्णदास के पास ले गये। बन्हों ने कहा कि, “यह एक भले मानुस की लड़की है, जो विपत्ति में पड़ पथ भूलकर यहां आ पड़ी है। आप यदि अपने संग इसे कलकत्ते से जाय तो यह अनाघिनी अपने पिता के घर पहुंच जाय।" यह सुन बाबू कृष्णदास सम्मत हुए और मैं उन को अन्तःपुर मैं गई। दुसरे दिन उन के घर की स्त्रियों के संग, बसु महाशय की स्त्री से अनाहत होने पर भी मैंने कलकत्ते की यात्रा की। पहिले दिन पांच चार कोस पैदल चल कर गंगातीर आना पड़ा, फिर दूसरे दिन नाव पर चढ़ी।

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पांचवा परिच्छेद।

छड़े झनकाती जाऊंगी!

मुझ को कभी गंगाजी का दर्शन नहीं हुआ था। अब उनके दर्शन करन से इतना आह्लाद हुआ कि अपने ऐसे दुःख को भी क्षण भर के लिये मैं भूल गई। गंगा का विशाल हृश्य! उसमें छोटी छोटी तरंगे और उन तरंगो के ऊपर सूर्य की किरणों की