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पांचवां अध्याय

आवश्यक समझता है वह इस बात को बेइन्साफ़ी नहीं समझता कि मजिस्ट्रेट को क्यों वे अधिकार देदिये गये हैं जो साधारण मनुष्यों को नहीं हैं। बराबरी का सिद्धान्त मानने वालों में भी मत-भेद है। कुछ साम्यवादियों का कहना है कि समाज के श्रम की पैदावार एक मात्र बराबरी का ध्यान रख कर बांटी जाना चाहिये। दूसरे साम्यवादियों का कहना है कि जिसको सब से अधिक आवश्यकता हो उस सब से अधिक मिलना चाहिये। कुछ ऐसे साम्यवादी भी हैं जिनका विचार है कि ऐसे मनुष्य को, जो अधिक कठिन काम करता है या जिसकी सेवा समाज के लिये अधिक मूल्यवान है, कुछ अधिक देदना अनुचित नहीं है। इन सब मतों के समर्थन में दलीलें दी जा सकती हैं।

न्याय या इन्साफ़ का शब्द इतने भिन्न स्थानों में व्यवहृत होता है, किन्तु फिर भी यह शब्द यथार्थ नहीं समझा जाता है। इस कारण यह निर्धारित करना कठिन काम है कि वह मानसिक कडी कौनसी है जिस ने इन सब भिन्न २ प्रयोगों को बांध रक्खा है। स्यात् इस बात को समझने में न्याय, उचित या इन्साफ़ शब्द की व्युत्पत्ति से कुछ सहायता मिले। इस कारण इस शब्द की व्युत्पत्ति पर विचार करना चाहिये।

यदि सब नहीं तो भी अधिकांश भाषाओं में 'उचित' शब्द के समानार्थ शब्दों की व्युत्पत्ति से पता चलता है कि आरम्भ में इस शब्द का सम्बन्ध क़ानून के प्रारम्भिक रूप अर्थात् माने हुवे रिवाज से था। अंग्रेज़ो का 'Justum' से निकला है और 'Justum' 'Justun' का एक रूप है जिस के अर्थ है "वह जिस की