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पांचवां अध्याय

प्रतिफल न देना एक प्रकार का लुटेरापन है। यदि उसको औरों के बराबर ही प्रतिफल दिया जाता है तो उससे औरोन के बराबर ही कामलेना चाहिये। उसकी अधिक दक्षता के अनुसार उससे कम समय काम लेना चाहिये तथा कम मेहनत करनी चाहिये। न्याय के इन परस्पर विरोधात्मक सिद्धान्तों का निर्णय कौन करेगा? दोनों पक्षवाले न्याय का आश्रय लेते हैं। दोनों न्याय के भिन्न २ रूप लेते हैं। एक पक्ष इस बात पर दृष्टि रखता है कि प्रत्येक व्यक्ति को कितना मिलना न्याय-संगत है। दूसरा पक्ष इस बात को ध्यान में रखता है कि समाज को कितना देना न्याय-संगत है। प्रत्येक का दावा उसके दृष्टि-कोण के अनुसार अखण्डनीय है। न्याय की बिना पर किसी एक पक्ष को अधिक अच्छा केवल स्वेच्छानुसार ( Arbitrarily) ही बताया जा सकता है। एक मात्र सामाजिक उपयोगिता ही इस बात का निर्णय कर सकती है कि कौनसा पक्ष अधिक मान्य है।

इसी प्रकार टैक्स लगाने के सम्बन्ध में भी बहुत से परस्पर विरोधात्मक न्याय के उसूल उपस्थित होते हैं। कुछ आदमियों का कहना है कि आर्थिक आय के अनुसार है टैक्स लगाना चाहिये। कुछ आदमियों की सस्मति है कि क्रमशः वर्धित कर ( Graduated taxation ) चाहिये अर्थात् जो आदमी अधिक बचा सकते हैं उन से अधिक प्रतिशत के हिसाब से टैक्स लेना चहिये। प्राकृतिक न्याय के अनुसार आर्थिक आय पर बिलकुल भी ध्यान न देना चाहिये। प्रत्येक मनुष्य से जब तक मिल सके बराबर टैक्स लेना चाहिये जिस प्रकार किसी मैस या कल्ब के सब मैम्बर-चाहे उनकी आर्थिक आय कितनेही हो-समान ( Privilege ) अधिकार के लिये बराबर