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न्याय से सम्बन्ध

रखने वाली सब बातों में केवल मौजूद ही नहीं रहता है वरन् मौजूर्दं रहना चाहिये तो फिर न्याय या इन्साफ़ का विचार उपयोगितात्मक आचारशास्त्र के मार्ग में कोई अड़चन नहीं है। न्याय उन कतिपय सामाजिक उपयोगिताओं का ठीक नाम रहता है जो बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं और इस कारण अन्य उपयोगिताओं से जाति के रूप में अधिक निरपेक्ष तथा मान्य है। विशेष दशा में किसी अन्य उपयोगिता का अधिक महत्वपूर्ण होना सम्भव है। इन कारणों से न्याय की कल्पना में साधारण उपयोगिताओं की अपेक्षा किसी और अधिक दृढ़ भाव से काम लिया जाना चाहिये और ऐसा ही होता भी है।