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उपयोगितावाद का अर्थ

देखकर उसके समान जीवन व्यतीत करने की लालसा हो। ऐसा मनुष्य, यदि निर्धनता, बीमारी, तथा प्रेम-पात्रों की बेवफ़ाई अथवा असामयिक मृत्यु प्रभृति शारीरिक तथा मानसिक वेदना पहुंचाने वाले जीवन के वास्तविक कष्टों से बच जावे और दूषित क़ानून तथा पराधीनता उस के मार्ग में रुकावट न डालें तो इस मत्सरजनक स्थिति को प्राप्त कर सकता है। इस कारण मुख्य समस्या तो यह है कि कष्टों से बचा जाय। कोई बडी तक़दीर वाला ही इन कष्टों से बचता है। आधुनिक स्थिति में ये कष्ट दूर नहीं किये जा सकते तथा अध़िकतर दशाओं में उचित अंश में कम भी नहीं किये जा सकते। किन्तु कोई भी मनुष्य, जिस की सम्मति क्षण भर के लिये भी माननीय है, इस बात में सन्देह नहीं कर सकता कि संसार के बहुत से कष्ट दूर किये जा सकते हैं और यदि मनुष्य उन्नति करता रहा तो ये कष्ट अन्त में बहुत कम रह जायेंगे। कष्ट पहुंचाने वाली निर्धता को समाज की बुद्धिमानी तथा व्यक्तिगत सद्भाव बिल्कुल खो सकते हैं। सब से बड़ा दुर्जय दुश्मन रोग भी अच्छी शारीरिक तथा नैतिक शिक्षा तथा दूषित प्रभावों के न फैलने देने से बहुत कुछ कम किया जा सकता है। विज्ञान की भविष्य उन्नति से भी इस दुर्जय दुश्मन पर विजय पाने की बहुत कुछ आशा होती है। जितनी विज्ञान की उन्नति होती जा रही है उतना ही अपनी असामयिक मृत्यु तथा इस से भी अधिक कष्टप्रद अपने सुख के आधार प्रेम-पात्रों की असामयिक मृत्यु का खटका कम होता जा रहा है। अब रही बदक़िस्मती तथा सांसारिक बातों में निराशाओं की बात सो उन का कारण मुख्यतया हमारी अदूरदर्शिता, दुर्व्यवस्थित इच्छायें