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दूसरा अध्याय

किसी प्रकार जीवन उच्च नहीं बन सकता, केवल इस ही प्रकार मनुष्य अनुभव कर सकता है कि चाहे भाग्य कितना ही मेरे विरुद्ध क्यों न रहे, मेरे ऊपर काबू नहीं पा सकता। एक बार ऐसा ख्य़ाल जमते ही जीवन के दुःखों की अत्यधिक चिन्ता काफ़ूर हो जाती है और रोम सम्राज्य के सब से बुरे समय में रहने वाले स्टायक अर्थात् तितिक्षावादियों के समान ऐसा मनुष्य शान्ति के साथ प्राप्य साधनों द्वारा तुष्टि प्राप्त कर लेता है।

किन्तु इस बीच में उपयोगितावादियों को इस बात की घोषणा करने से नहीं चूकना चाहिये कि आत्म-त्याग( Self-devotion ) पर हमारा भी उतना ही अधिकार है जितना तितिक्षावादी ( Stoies ) या अतीतात्यकों ( Transcendentalists ) का। उपयोगितात्मक आचार शास्त्र इस बात को मानता है कि मनुष्य दूसरों के फ़ायदे के लिये अपने सब से अधिक फ़ायदे को छोड़ सकते हैं। किन्तु ऐसा आत्म-त्याग जो सुख के समूह ( Sum total of happiness ) को नहीं बढ़ाता या बढ़ाने में सहायता नहीं देता निरर्थक आत्म-त्याग है। उपयोगितावाद एक मात्र उस आत्म-त्याग की प्रशंसा करता है जो मनुष्य जाति या किसी जाति विशेष के सुख या सुख के कुछ साधनों को बढ़ाता है।

मुझे इस बातको फिर दुबाग कहना चाहिये--क्योंकि उपयोगितावाद के विरोधी इस बात को स्वीकार करने की उदारता प्रदर्शित नहीं करते हैं--कि किसी आचार के ठीक होने का उपयोगितात्मक आदर्श वह प्रसन्नता नहीं है जिस का सम्बन्ध केवल कर्ता ही से हो वरन् उन सब मनुष्यों की प्रसन्नता है जिनका कि उस बात से सम्बन्ध है। अपनी निजी प्रसन्नता तथा दूसरों की प्रसन्नता का विचार करने में उपयोगितावादी को उदासीन