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न्याय से सम्बन्ध

लेता है। यह बात जानने के लिये इस बात पर विचार करना आवश्यक है कि क्या न्याय तथा अन्याय की भावना रंग तथा स्वाद की चेतनाओं के समान अव्युत्पन्न है या अन्य भावनाओं के मेल से बनी हुई व्युत्पन्न भावना है।

इस विषय पर प्रकाश डालने के लिये इस बात के जानने का प्रयत्न करना आवश्यक है कि न्याय या अन्याय की क्या पहचान है। न्याय-विरुद्ध समझे जाने वाली तमाम आचरण-पद्धतियों में क्या कोई सामान्य गुण है जिस से इस बात का पता चल सके कि अमुक आचरण-पद्धतियां न्याय-विरुद्ध होने के कारण नापसन्द की जाती है तथा अमुक आचरण-पद्धतियां अन्य कारणों से? यदि ऐसा कोई सामान्य गुण है तो वह क्या है? यदि प्रत्येक बात में जिसे मनुष्य न्याय-संगत या न्याय-विरुद्ध समझते हैं कोई सामान्य गुण या सामान्य गुणों का समुदाय सदैव उपस्थित रहता है तो हम इस बात का निर्णय कर सकते हैं कि क्या यह सामान्य गुण या गुण-समुदाय उस वस्तु के चारों ओर हमारे मनोविकारों के संगठन के साधारण नियमों के अनुसार उपरोक्त विशेष स्थायी भाव ( Sentiment ) उत्पन्न कर सकते हैं या इस प्रकार के स्थायी भाव का स्पष्टीकरण नहीं किया जा सकता और इस कारण इस को प्रकृति का विशेष प्रबन्ध चाहिये। पहिली बात ठीक निकलने की दशा में तो इस प्रश्न के स्पष्ट होने के साथ २ ही असली समस्या भी स्पष्ट हो जाती है। किन्तु यदि दूसरी बात ठीक निकले तो हम को किसी और उपाय का सहारा लेना होगा।

भिन्न २ वस्तुओं के सामान्य गुणों को मालूम करने के लिये हम को पहिले उन वस्तुओं का निरीक्षण करना पड़ेगा।