पृष्ठ:उपहार.djvu/११०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७६

विमला पकवान बनाने में इतनी तल्लीन थी कि असिलेश का श्राना उसे मालूम न हो सका। और दिन होता तो शायद विमला के इस प्रकार चुप रह जाने पर अखिलेश भी चला जाता, परन्तु आज तो उस विमला को अपनी रासिया दिखलानी थी, उस पर यह प्रकट करना था कि देखो विमला मुझे जो सम्मान प्राप्त है यह तुम्हें नहीं, इसलिए उसने विमला को देडा- 'विन्नो ! यह तुम्हारे मिट्टी के लड्ड कौन खायगा जो इतने ढेर से बनाए जा रही हा " विमला के हाथ का लड्डू गिर कर फूट गया। उसने तुरन्त अखिलेश की तरफ देखा और अखिलेश ने सगर्व दृष्टि से अपन हाथों को देखा, जिन पर राखिया चमक रही थीं। विमला अपने पकवानों को भूल गई, फिर यही राखिया उसके दिमाग में झूलने लगी। अखिलेश के पास खडी होकर हाथ से मिट्टी झाडती हुई योली- "तुम्हें क्सिने राखी याधी है अखिल" "चुन्नी ने याधी है और मेने उसे एक रुपया दिया है समझी" अखिलेश ने कहा । कुछ छणों तक न जाने क्या सोच कर विमला बोली- "तो तुम मुझसे राखी बधयालो अखिल भैया! मुझे रुपया न देकर अटप्नी ही दे देना" "नहीं भाई ! अठन्नी की यात तो झूठी है । मेरे पास इकन्नी है वह में तुम्हें दे दूंगा। पर क्या तुम्हारे पास राखी है" अखिल ने पूछा। विमला घुछ सोचती हुई बोली- -