पृष्ठ:उपहार.djvu/११८

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"A resei ved love makes suspicious lusbend" यह कहावत विनोद पर श्रवरश चरितार्थ होतो थी। वह विमला को जितना ही अधिक प्यार करते थे, उतना ही उन्हें उस पर सन्देह भी होता था। नौकर चाकर से भी विमता का यात परना उन्हें अच्छा न लगता। वह विमता पर अपना एक छन अधिकार चाहते थे। यह तो कदाचित यहां तक चाहते थे कि विमला को किसी प्रकार, यात ही छोटे आकार में परिवर्तित करके अपने पाकेट में रखले जिस में वही देवल विमला को देख सक, यहां तक और किसी की पहुंच ही न हो सके। विमला जब घर आई तब वह अपनी खाट पर लेटे थे। उन्होंने जान बूझ कर अखिलश की एक फोटो निकाल कर अपनी चारपाई पर रखली थी । विमलाने पहुंच कर पति का चेहरा देखा, देखते ही पहिचान लिया कि इन्हें किसी प्रकार का मानसिक क्लेश हो रहा है। वह उनके पास पहुंच कर खाट पर बेठ गई, धैठते ही उसकी दृष्टि अखिलेश की फोटो पर पडी, कुछ हर्ष, फुछ कौतूहल से पति को उदासी कारण पूचना तो वह भूल गई, अखिलेश का चित्र उठा फर फौरन पूछ बैठी, "यह फोदा तो अखिलेश का है, यहां कैसे श्राया? क्या तुम इन्हें जानते हो"? "जानता हूँ" बहके विनोद ने करवट फेर ली। विमला की तरफ पीठ और दीवाल की तरफ मुंह फर के यह अपनी चेदना को चुप चाप पीने लगे। "तुम इन्हें जानते होतो अभी तक मुझसे कहा क्यों नहीं? घिमला ने फिर घूछा । विनोद ने कोई उत्तर न दिया। इसके बाद विमलाको फिर कुछ पूदने का साहस भी न