पृष्ठ:उपहार.djvu/११९

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हुआ। वह वहीं एक तरफ ये कर विनोद के पैरों का महलाने लगी, विनोद ने अपने पैरों को जोर से खींच लिया, विमला समझ गई कि नाराजी उसी पर है । वह विनोद के स्वभाव को इतने दिनों में बहुत अच्छी तरह जान गई थी। विनोद उस पर जो पद पद पर सन्देह करते थे, वह भी उससे छिपा न था किन्तु विनोद किन्तु घिनोद का हृदय कितना सञ्चा, कितना गंभीर और कितना उदार है, यह भी वह भली भांति जानती थी। पति का सन्देह मिटाने के लिए यह नम्र स्वर में बोली।

"देखो किसी तरह का मन्देह न करना अखिलेश मेरा माई है समझे"।

"सब समझ लिया" विनोद ने रखाई से उत्तर दिया" विमला ने फिर अपने उसी नत्रस्वर से पूछा-"मोर तुम वहां से चुपचाप मुझे छोड़ कर चले क्यों पाए ?

"चला श्राया मेरी खुशी | तुम्हें अपने साथ नहीं लाना चाहता था, फिर भी तुम क्यों चली आई ? दो तीन दिन मां के साथ रह लेती"

विनोद ने तीन स्वर में कहा । कहने को तो यिनोद यह बात कह गए, किन्तु इस दो ही घंटे में उनके हृदय की जो हालत हुई थी। यह वही जानते थे। कई बार स्वयं जाने के लिए उठे, फिर श्रात्मअभिमान के कारण न जा सकेनौकर को तांगा लेकर भेज ही रहे थे कि, विमला श्रा पहुंची। पिमला के थाने से पहिले यह उसके लिए बहुत विकल थे, किन्तु उसके श्राते ही यह तन गए। विमला यह समझती थी इसलिए उसे कुछ इसी श्रा रही थी, परन्तु फिर नौ अपनी हंसी को वह दवाती हुई बोली-