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पर क्षण भर के लिये मुझे या स्वयं अपनेको समझ लो फिर सोचो लगातार तीन-चार चिट्ठियां भेजने पर भी यदि कोई तुम्हें उत्तर न दे, तो फिर उसके बारे में क्या सोचोगे? यही न कि बड़ा घमंडी है। चिट्ठियों का उत्तर नहीं देता।'

मैं निरुत्तर हो गया, दोनों चिट्ठियां मेरे हाथ में थीं। दोनों की तारीखें एक थीं। मैं समझ गया कि जल्दी जल्दी में सम्पादक महोदय ने मेरा पत्र शीला के लिफ़ाफ़े में और उसका मेरे लिफाफे में रख दिया। मुझे कुछ हंसी आ गई । मैंने शीला का पत्र उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा-'लो यह पत्र तुम्हारा है, मेरे पास उसी तरह चला आया, जिस तरह मेरा पत्र तुम्हारे पास आ गया है !'

वह पत्र पढ़ने लगी। मैंने उसकी कहानी उठा ली ।

x x x

इसी समय बाहर कुछ कोलाहल सुन पड़ा। मैंने बाहर जाकर देखा तहसील के दो चपरासी ऊँचे ऊँचे लट्ठ लिये खड़े थे। पूछने पर मालूम हुआ कि शीला के पति पर जो २००) का जुर्माना हुआ था उसे वसूल करने के लिए कुर्की आई है। मैंने उन्हें समझ-बुझा कर घर बिना कुर्क किये ही वापिस भेजने का प्रयत्न किया, पर वे भला क्यों मानने लगे। कदाचित् नगद नारायण से उनकी पूजा होती, तो देवता कुछ ठंडे पड़ जाते; पर वहां न तो शीला के ही पास कुछ था, और न मेरे । आखिर कुर्की शुरू हुई ।

वे लोग घर के अन्दर से सामान ला-लाकर बाहर रखने लगे, बक्स, मेज, कुर्सियां आलमारी, तस्वीरें, बरतन इत्यादि । तात्पर्य यह कि जो कुछ भी सामान था, एक-एक करके सब बाहर आ गया और सब चीजों की एक दुकान