पृष्ठ:उपहार.djvu/१७१

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१४१ और कोई अवगुण मिलता न था,किन्तु वह विवश थे हृदय के ऊपर किसका वश चला है। यह अपने व्यवहार पर स्वयं ही कभी कभी दु.खित हो जावे; किन्तु फिर वही भूल करते। कमो कभी नौरों के सामने भी छाया सेवह ऐसा व्यवहार कर चैठते जो अनुचित कहा जा सकता था। छाया सुष की छाया में ही पलकर इतनी बडी हुई यो। अपमान । अनादर और तिरस्कार के ज्वालामय संसार से वह परिचित न थी। किन्तु अव पद पद पर उसे प्रमोद से प्रेम के कुछ मीठे शब्दों के स्थान पर तिरस्कार से भरा हुआ थपमान ही मिलता था। छाया ने प्रमोद के इस परिवर्तन को ध्यान-पूर्वक देखाथा। उनके हृदय को अच्छी तरह टटोला था इस परिवर्तन के बाद भी उसने समझ लिया था कि प्रमोद फे हृदय में उसने एक ऐसा स्थान बना लिया है जिस तक किसी और को पहुंच नहीं है, उसे इसी में सन्तोप था। एक कुल यधू इसके अतिरिक और चाहती हो क्या है ? पत्ता के रूप में पहुंच कर छाया ने अपना अस्तित्य हो मिटा दिया था। प्रमोद के चरणों में उसके लिये थोडा-सा स्थान बना रहे, यही उसकी साधना थी और इस साधना के बल पर हो यह प्रमोद का किया हुआ अपमान और तिरस्कार हंसकर सह सकती थी। उसके ऊपर उस अपमान और तिरस्कार का अधिक प्रभाव न पड़ता। प्रमोद के जरा हंसकर घोलने पर यह सब कुछ भूल जाती थी। उसे कुछ याद रहता तो केवल प्रमोद का मधुर व्यवहार । प्रमोद के माता-पिता अाखिर पुत्र को क्तिने दिनों तक छोड़ कर रह सकते थे? और अब तो प्रमोद के साथ-साथ