पृष्ठ:उपहार.djvu/२३

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कहानियों को कथावस्तु के अन्तर्गत कुछ घटनाएँ तथा परिस्थितियों मुझे अत्यन्त मार्मिक और कुतूहल वर्धक प्रतीत हुई। जैसे, भादिना का वह स्थल जहां हाना मरणासन कुन्दन के मस्तक पर हाथ रखे बैठी है। उसके पतिदेव सहसा उस कोठरी में प्रवेश कर आग्नेय नेत्रों से उसकी धार देखते हैं और हीना कुन्दन दो छोड़कर वहाँ से तुरन्त चल देती है । यह नाट्य- स्थिति वडी प्रभावोत्पादक है। अँटा की सान में योगेश का अपनी चिर परिचित बेंच पर जा लेटना तथा आत्म चिन्तन में रत हाकर अपने अतीत के एक-एक पृष्ट को पलटना--'वही चैती पूर्णिमा थी "इत्यादि-तीब्रतम स्थिति को उपस्थित करता है। चढ़ा दिमाग में तो स्थिति विडम्बना की हो नीव दी गई है। अमियुक्तव भी विषम स्थिति से पाली नहीं है। न्यायालय का दृश्य मार्के का है । दर्शक का चित्त कभी भय और आशंका से सिहर उठता है, कभी उसके मन में आशा और विश्वास का संचार होने लगता है। इस प्रकार न्यायाधीश जब तक अपना निर्णय नहीं सुना देता, सशय और द्विविधा पाठक के हृदय को बिलोडित करते रहते हैं। कानून अन्याय क पक्ष में दीखता है। यह सदा पाठक के भय का कारण बना रहता है । पवित्र पो में आतो का विनाद को ठीक उस समय राखी बांधने के लिए आना, जिस समय वह विमला को अखिल के घर ठीक उसी कार्य के लिए नहीं जाने देना चाहते, स्थिति विडम्बना का अच्छा उदाहरण है। उसी प्रकार बालिका विमला का माँ की पीठ पर झूलकर राखी बांधने का प्रस्ताव करना भी करुण स्थिति को उत्पन्न करता है। कंगन के सम्बन्ध में, वश्या की लइका में प्रमोद के माता पिता की बात चौत भी स्थिति विनोद को उपस्थित करती है ।