पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१०

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नही था। मेरा कहने का तात्पर्य यह है कि साहित्य-विकास को एक कालीन युग-परिस्थिति पर आधारित करने का प्रयास बहुधा हास्यास्पद हो जाता है। और इसलिये मैंने अपने सम्मुख यह प्रश्न रखा था कि मैं महाकाव्य और विराट काव्य की सृष्टि की असंभावन के वर्तमान कालीन कारणो पर विचार करूं या न करूं। सूक्ष्म मे मैं यह निवेदन करना चाहता हूँ कि मै वर्तमान युग विराट् काव्य कृतियो या महाकाव्यो के सृजन के लिये अनुपयुक्त नहीं मानता। यों, यह बात प्रत्यक्ष है ही कि समूची मानवता के इतिहास मे व्यास, वाल्मीकि, वर्जिल, कालिदास, गोएथे, शेक्सपियर, आए दिन पैदा नहीं होते। सिंहन के लॅहडे नही। पर चूंकि शेक्स- पियर अब नही होते-इसलिये यह तो नहीं कहा जा सकता कि अब माटको का युग समाप्त हो गया। इसी प्रकार यदि चाल्मीकि और कालिदास अब नहीं होते तो यह कैसे कहा जा सकता है कि विराट काव्यो या महाकाव्यों का युग समाप्त हो गया। अभी तक प्रबन्ध काव्यो, महाकाव्यों की सृष्टि होने की क्रिया चल रही है। मन्द या तीव्र गति का प्रश्न उतना महत्वपूर्ण नहीं है। महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रबन्ध-काव्यो की ओर आज भी प्रवृत्ति है। अत मै यह बात मानने मे असमर्थ हूँ कि महाकाव्यों, प्रबन्ध-काव्यों का सृजन-प्रयास इस युग की प्रवृत्ति के प्रतिकूल है। हॉ, विराट् काव्यो (IBipics) का सृजन इधर सहस्राब्दियो से नहीं हुआ है। कदाचित् आगे भी न हो। पर, इसके लिये किसी युग की परिस्थितियों को उत्तरदायी समझना उचित न होगा। विराट् काव्यों के रूप मे प्रागैतिहासिक कालान मनीपियों ने, जो थाती मानवता को दी है वह आगे आने वाले युगों तक उसके लिये पर्याप्त है। मेरी इस "अम्मिला" मे पाठकों को रामायणी कथा नहीं मिलेगी। रामायणी कथा से मेरा अर्थ है क्रम से राम-लक्ष्मण-जन्म से लगाकर रावण-विजय और फिर अयोध्या-आगमन तक की घटनाओं का वणन ! ये घटनाएं भारतवर्ष मे इतनी अधिक सुपरिचिता है कि इनका वर्णन करना मैने उचित नहीं समझा । इस ग्रन्थ को मैने विशेष- कर मन स्तर पर होने वाली क्रियाओ और प्रतिक्रियाओं का दर्पण बनाने का प्रयास किया है। रामायणीय घटनाओं का राम, सीता,