पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१०५

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द्वितीय सर्ग 7 जब हे तटवर्ती विटप-अवलियो, क्या न सुना वह स्नेहालाप ? तुम न भूलना ललनाओ का वह रसमय वात्सल्य-मिलाप रखना याद अनोखा यह दिन, गाँठ बाँध लेना तुम गिन-गिन , भला-भटका में प्राकर, यह सब पूछूगा मै जिस दिन,- उसी समय, उस दिन, हे पादप ! जो पीते हो सरयू नीर, तुम्हे सभी कुछ कहना होगा डुला-डुला कर किसलय-चीर । (४७) "नीडो मे तुम बैठ रहे हो मौन हुए जो चुपके से, हे सब गगन बिहारी द्विजगण, क्यो बैठे हो दुबके से ? अवधपुरी की बालामो त्रेता की गृह-ललनायो ने- पूज्य ऊम्मिला के सुनाम की- श्रद्धायुत मालाओ ने लक्ष्मण की प्रियतमा वधू का सुन्दर नाम स्मरण किया, उसे कभी न भूलना, रख लो विस्फारित कर मृदुल हिया । उन एक बार पाऊँगा मै जब दिन-मणि होता होगा अस्त जब तुम बैठे होगे दिन के कर्मों को करके सन्यस्त उस क्षण तुम सब हो कर नीरव, किए शान्त कलरव का विप्लव, मुझे सुनाना इस प्रभात के मुदमय सम्भाषण गौरव तुम्हे आज निज पख-पत्र में यह गाथा है लिख लेनी, जो कुछ कहती है ये स्नानातुरा रमणियाँ पिक बैनी