पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१२५

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द्वितीय सर्ग (१३९) नेह के गगन मे जब चढेगी विमल चङ्ग, तब डोर तू थाम लेना, अम्मिला के लखन धनुर्धर वीर है । तू सदा युगल का नाम लेना, वायु मे डोल कर,गगन को चूम कर,चङ्ग सकुशल सलौनी उडेगी, खीचना डोर जब चाहना। गगन मे देख झटके य' आँखे जुडेगी। (१४०) पाखे दो थी अब चार हुई, मन मे मन की ऊम्मिला-लखन की होड बदी, दोनो जीते पर हार हुई । गुजार हुई, -