पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१३

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प्रोत्साहन १ चलो, हे मेरी टूटी कलम, चलो उस ओर, किसी के पास छोड दो कलियुग की मसि यही, करो त्रेता युग में कुछ बास किसी के हृदय-खड की व्यथा, सुनो, कर दो न्योछावर प्राण, किसी की धीमी-धीमी आह करे तुम को कुछ-कुछ म्रियमाण, अश्रु का बिन्दु, शोक का सिन्धु, व्यथा का असि रूपी नव इन्दु, जहाँ है उदित, क्षुब्ध, निर्धारित उधर को चलो छोड भव सिन्धु ।