पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१३३

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द्वितीय सर्ग (१५) "वत्स" माता के सुन ये बचन- पुगल जोडी कुछ चौकी । अहा- हिडोले की मानो भरपूर- पैग रुक गई,-जननि ने कहा- "वत्स, वन-यात्रा की यह बात तुम्हारी, मुझको है स्वीकार , तुम्ही दोनो जाओ मुदमान क्योकि मम गमन कठिन इस बार, पूछ लूंगी नरपति से आज तुम्हारे जाने में क्या देर ? दास-दासी सब है तैयार पुनो तुम वन-विहँगो की टेर । (१६) डालियो पर बैठे है विहंग, कर रहे है कुछ बाते आज, आ गए वन-विहार के हेतु, ऊम्मिला रानी, लक्ष्मण राज , फूल कहता 'मै फूला मुदित, कली, t, तू भी खिल जाना, अये, अवध के कुसुम, कली के सहित, हमारी अटवी मे है छये ।' गा उठो पक्षी स्वागत गीत, छिटक जाए स्वागत का रंग, अम्मिला-लक्ष्मण का नव मोद, देख लज्जित हो उठे अनग ।