पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१३६

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म्मिला ? ) लुभाने लगी कपोति, (२१) - विश्व मे छाया नूतन लास्य, नृत्य-क्रीडा का अभिनव रास, रास या महा रास का दृश्य उपस्थित था ससृति का हास चराचर चहक रहे थे मुदित, उदित थी नेह-चन्द्र की कोर, दिवस मे भी वह फैली हुई अनेक चकोर , अरी ऊम्मिले, ताल दे उठो, नचा दो लक्ष्मण के पद-पद्म , महल की पाली हुई हुआ वन आज तुम्हारा सद्म । (२२) चन्द्र को, रवि ने निज रथ रोक, किया आमन्त्रित अपने पास, दिशाये ताली कॉपने लगा शुभ्र आकाश गगन ने नीली चादर बिछा, सजाया रंगमच वाद-सूरज का हुआ सुनृत्य, एक मे एक गए चरण-विन्यासो से कुछ सिकुड, फट गया वह अम्बर का छोर, प्रलय होते-होते म्मिला ने की करुणा-कोर । उठी, 1 को खूब, 1 गया, १२२