पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अम्मिला . दक्षता उमडी (२५) पवन डगमग पग धरती बही, सकुचित कलियाँ कुछ हिल उठी, हृदय में धारे रेणु पराग, ऋतुमती के रज-सी खिल उठी चहकने लगे विहगम व द, महक उठे नव कलिका-गुच्छ, दहकने लगी हृदय की प्राग भस्म हो चला काम वह तुच्छ, स्वच्छता की प्रॉधी चल पडी, चारो ओर, रच गया महा रास का साज, अम्मिला का नाचा मन मोर । (२६) घोर रव आवाहन-मन्त्र- प्रकृति के कण्ठ द्वार पर रुका , मन्द्र स्वर का सोता गम्भीर बहा । नीरवता के ढिग झुका बसन्ती घडियो मे बह उठा, पर्ण-कण्ठो से मर्मर फाग छाई नभ मे । जग बीच, नीद का छाया राग विहाग , जागना रास-चक्र मे कहा ? यहा उल्लास, विलास, सुरास, ऊम्मिला ने हँस कर दी डाल सुलक्ष्मण की ग्रीवा मे पाश । का w राग, .१२४