पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१३९

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द्वितीय सर्ग तरगित हुआ (२७) गूंज उद्या नव-जीवन-गीत, बहा नवरस कण-कण मे आज , कोपले फूटी, अडज मुदित, नई ससृति का जुडा समाज , राज मधु का छाया चहुँ ओर, डोर बँध गई नेह की नवल सबल लक्ष्मण-भुज मे बंध गई- ऊम्मिला । बहा स्रोत अति प्रबल' , प्यार की सरिता उमडी और . हृदय-कल्लोल, लोल लोचन सकुचाये और चुम्बनो से सज गए कपोल । (२८) बेच दी अपनी जडता प्राज- प्रकृति ने नव चेतन के हाथ बिक गई ज्यो हीरे की कनी, किसी पारखी चतुर के साथ , लगन लग गई, मगन हो गई-- विमल ऊम्मिला हो गई धन्य , लखन का नव उपवन खिल उठा, नेह हो गया नितान्त अनन्य सैन्य उमडी मनोज की। खिले हिये में चिर सॅजोग के फूल , ग्मिला का दुक्ल हिल उठा, हर्ष फैला सरिता के कूल । 3