पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१४३

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द्वितीय सर्ग . (३५) विजृम्भण से लक्ष्मण का वदन- हुआ धीरे से पुलकित । अहा- कहा अँगडाई ने, “म्मिले, नीद का न्पुर यह बज रहा ।" रखा लक्ष्मण ने मस्तक आन- । ऊम्मिला की जघा पर । और- मूंद कर नेत्र बढा दी भुजा, प्रियतमा की ग्रीवा की ओर , डोर अरुझी नीडा की । रम्य रमण के सुरझ गए सब तार, थकित क्रीडा ऐसे झुक रही-- मेघ ज्यो झुक आये दो-चार ।। (३६) ऊम्मिला ने धीरे से कहा- "पा रहा है निदिया का सैन्य विजित करने, अपराजित, तुम्हे,- दिखाओ हो क्यो अपना दैन्य ? बडे हो युद्ध-कुशल तुम आर्य, छेड तो दो निद्रा से युद्ध , तनिक देखू ये कैसे निपट- मृधुल' अॉखे हो जाती क्रुद्ध, कैसे होती है श्वास, युद्ध-लक्षण दिखला दो सभी, कहो तो ले आऊं धनु-बाण, या कहो असि ले आऊँ अभी ।" १२६