पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१४४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ऊम्मिला (३७) "ऊम्मिले" यो अलसाने बैन सुलक्ष्मण बोल उठे तत्काल, 1 समा "म्मिले, तुम हो मेरा धनुष, तुम्ही हो मेरी असि विकराल, तुम्ही तो खीच रही हो मुझे नीद के रंग महल मे प्राज तनिक मुसका दो, रानी, और, जागरण की तुम रख लो लाज नेत्र मीलित है मेरे, किन्तु, तुम्हारे मन्दस्मित की रेख,- जाएगी नैनो बीच, बिधेगा निद्रा का अविवेक ।" (३८) म्मिला बिहँस उठी, जब सुनी- लखन की प्यार पगी यह बात हो गए कुछ आरक्त कपोल, लाज से सकुच गए सब गात देख ली उनकी लज्जा-छटा, सुमित्रा-सुत ने, आखे खोल, और बोले-"क्या युद्धोत्साह- किये है रजित युग्म कपोल ? थक गई होगी करते युद्ध नीद से--आमो मेरे फूल ।" ऊम्मिला के कपोल से सरक गया उनका वह विरल दुक्ल । 7