पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१४६

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जम्मिला 1 ?" वह बात "कहो तो एक बात में प्राज, पूछ लूँ तुम से प्रिय,” यो कहा- ऊम्मिला ने । जिज्ञासा ने कि- ज्ञान का शुभ कर-पल्लव गहा "कहो, क्या है वह ऐसी बात कि तुम भूमिका बाँधने चली ? सुनो टुक, मैं हूँ सेनिक एक और तुम हो विदेह की लली लोक, परलोक, अण्ड, ब्रह्माण्ड, जीव, माया- यह मुझे न ज्ञात, न जाने क्या तुम पूछो, देवि, कहो फिर भी, क्या है (४२) "हास-उपहास भाव सुनो मेरी परिपृच्छा दीन , मिटाओ सशय, हे वागीन्द्र, सुनो टुक तुम हो कर तल्लीन प्रेम के शुद्ध रूप मे, कहो, सम्मिलन है प्रधान, या गौण ? कौन ऊँचा है ? भावोद्रेक ? या कि नत आत्मनिवेदन मौन ? मिलन---यह सासारिक सयोग, पार्थिव भाव-है न यदि पूत, कहो तो, फिर सम्मिलनोल्लास हुआ क्यो मनुज-प्रकृति-सभूत ?" के इन्द्र, ?