पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१४८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

म्मिला 1 (४५) भाव के भूखे वे सौमित्र, कर उठे जब यो सहसा कथन ऊम्मिला सहम गई तत्काल, न निकले उसके मुख से वचन , लजीली रसना चुप हो रही. कण्ठ का द्वार हुआ अवरुद्ध, प्रोष्ठ का सुस्पन्दन थम गया, हुआ चचल मन कुछ हत बुद्ध शुद्ध वचनावलियो ने किया नम्र दैन्याश्रम मे विश्राम, राम के अनुज निछावर हुए, निरख यह मौन-मूर्ति अभिराम । (४६) और फिर बोले हो गभोर- "प्रश्न क्या है? कि प्रेम मे,-अहा, सम्मिलन है प्रधान या गौण? चिर विरह का आसन है कहा सुनो ऊम्मिले, तुम्हारी बात- बड़ी गहरी है । कही न शाह, कहूँ जो कुछ, उस मे में यहा, कदाचित् गुथ जाऊँगा, आह , किन्तु अपनी पृच्छा का, देवि, तनिक विस्तृत-सा उत्तर सुनो, जनक की तनये, रुचि अनुरूप कटकित यह प्रश्नोत्तर चनो । 7