पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१५०

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(४६) उस समय जब हम सब परमाणु,- सृष्टि के आदिकाल के समय,- एक मे एक, शक्ति से बिधे, मचाते थे जडता का प्रलय,- उस समय प्राण-दान का खेल- हुआ । हम सभी हुए उत्पन्न । तभी से श्रवण-रूप-रस-गन्ध- व्याधि से है, हम सब आच्छन्न , अन्न मे आ कर अटके प्राण- खिलाडी का है यह सब खेल, वासनावृत है हम, हा,--किन्तु मोक्ष की बढ़ती जाती बेल > बना यह पचभूत का कोष, हुआ प्राणो का नव-सचार, छिद गए चेतनता के बाण, खुले जीवन के बद्ध किवार उत्क्रमण का विकास हो गया, प्रसारित हुआ बोध, प्रतिबोध , युद्ध ठन गया-आग लग गई, दिखाई दिया रक्त-प्रतिशोध , जीव ने करके जडता विजित उठाई अपनी अयुत वर्षों तक फिर भी रहा वासना मे लिपटा वह तुच्छ । 2 ग्रीवा उच्च,