पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१५६

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ऊम्मिला (६१) धीरता तिनके सी बह जाय, हृदय मे आतुरता उठ आय, एक त्रुटि युग-युग-सी खल उठे, पलक का अन्तराय उठ जाय, झिझक मिट जाय, नेत्र गड जॉयें, पुतलिया ये चारो अड जॉयें , ऊम्मिला का स्नेहाम्बुधि-नीर, अम्मियो के मिस बढ-बढ आय, प्यार का पारावार अपार उमड आए, हम दोनो बहे, प्रेम की पूर्ण-प्राप्ति की कथा- कहानी दोनो कहते रहे । (६२) थाम लो तुम मेरी धनु-डोर, थाम लू मै तव अचल-छोर अग्रसर हो, उस पथ मे जहा- उठ रहा पूर्ण-प्यार का रोर, मोर-सा मम मन थिरके, देवि, मोरनी-सी तुम डोलो एक मे एक बद्ध हो सदा,- रहे करते हम दोनो रास, उसी रति-गति से प्रेरित हुए करे हम सब जीवन के कार्य, अये, दिखला दे जग को आज कि क्या है प्रेम और औदार्य । पास १४२