पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१५८

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ऊम्मिला ? m af अरी रानी क्यो ललचा रही ? लाज से क्यो ठानी है रार तनिक मुख तो कुछ ऊँचा करो, रच कर लूँ नैनो को प्यार, एक चुम्बन से नीवी एक,- हिये में पड़ जाती तत्काल , सालती रहती है प्रति घडी, कसक करती मुझको बेहाल, बहुत हौले हौले से कई अथिया तुम ने की है ग्रथित, नेह-दधि की ये गाठे, देवि, आज हो जाने दो कुछ मथित । मुक्ति की प्राप्ति जीव के लिए प्रतीक्षा है लम्बी नित नई, रिभाने को अपना प्रिय-पात्र, साधनाएँ वह करता कई, प्राणियो का यह भौतिक-प्रेम, उसी आकर्षण का है अग, तनिक सी ठोकर से, हे देवि, छूट जाता छिलके का अण्ड मे हुआ प्राण निर्माण तभी सहसा छिलका फट गया, लगी भीतर से जागृत चोट, तभी इन्द्रियावरण हट गया । सग,