पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१६०

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म्मिला रहा, 1 ? मूक शब्दावलिया हो गई, हृदय का स्पन्दन कुछ रुक गया, अपार्थिव नेह, धार कर देह, ऊम्मिला के ऊपर झुक गया, चुक गया शताब्दियो का व्याज, न लेखा-ड्योढा बाकी ऊम्मिला मे लक्ष्मण घुल गए, अनोखी थी वह झांकी, अहा द्वैत का सब झगडा मिट गया कहो फिर कहा हिसाब-किताब ? प्राण के सम्मिश्रण मे कौन- पूछता, हुई हानि या लाभ (1995 ) नेत्र यो ही चारो झप गए, चतुर्दिक नीरवता छा गई, ऊम्मिला के उरोज पर झुके, सुलक्ष्मण को निद्रा आ गई, पच-शर-रति दोनो आक्लान्त, हुए तन्मय-से कुछ सो रहे, पुरुष औ' प्रकृति हुए निर्धान्त, मस्त अपनी लय मे हो रहे, खुल गए जाग्रति के सब बन्ध, "अह" के सारे बन्धन क्षीण, ऊम्मिला-लक्ष्मण मानो प्राज हो गए शुचि त्रिजत्व में लीन ।