पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१६६

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अम्मिला + चतुर चरणो (८१) झुट-पुटे क्षण चमचम कर उठे, पन्थ-रज-कणिया हुलसित हुई का पुण्य-प्रसाद कि जीवन-गलिया पुलकित हुई , लक्ष्मणोम्मिला चरण-विन्यास- बन गया चतुष्फलो का रूप नेह उनका मॅज कर बन गया- सत्य, शिव, सुन्दर रूप-अनूप, हुए यति-गति-रति-मति-पति लखन, बनी अति गति-मति-यति ऊम्मिला, बन गए लखन विदेह अनग- बनी कल्पना-सुरति अम्मिला । (८२) हुए अन्तर-तर विमल विशुद्ध, ज्ञान जग बैठा पूर्ण प्रबुद्ध, मुकुर का मल पल मे हट गया, जगी धर्म अविरुद्ध, हुआ आन्दोलित हिय-हिडोल, पैग, समता की रह-रह बढी, बढी, फिर बढी और फिर बढी, अलख के सिहासन तक चढी , ऊम्मिला-लक्ष्मण भय हो गई,--- ऊम्मिला-रूप ऊम्मिला-हिय में छाए लखन,---- लखन-मन बसा ऊम्मिला-चित्र । भावना सौमित्र, -१५२