पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१७२

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ऊम्मिला साध (६३) अधखिली आँखो मे भर स्वप्न, बाहु मे आतुरता को लिए, अधर मे वचन-विकम्पन साध, हिये मे आकुलता को लिए, कर रसना मे सलाप बैठ कर श्वासोच्छवास-हिडोल, लिए अजलि मे हृदय-प्रसून, अमित, रस-लोल, ललित,अनमोल,-- ढुल गई विमला श्री ऊम्मिला, लखन के चरणो मे चुप-चाप, न मोल, न भाव, न सौदा हुआ, समर्पण हुआ आप ही आप । (६४) योग-निद्रा नयनो मे भुजानो मे भर शक्ति अखण्ड, अधर में लेकर चुम्बन-प्यास, हृदय मे प्रेम ज्वलन्त प्रचण्ड, जीह से जपते "श्री ऊम्मिला"- झूलते हिय-कम्पन-पर्य क, भरे प्राणो अर्पण-आग, विचरते मस्त, निपट निशक, समर्पण-विधिया पूरी उठी तादात्म्य-गूंज घनघोर, सुलक्षण लक्ष्मण “प्रह" बिसार- ऊम्मिला-दृगचल-छोर । भरे, म बँधे