पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१७४

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ऊम्मिला > नृत्य-रेखा-मडित (६७) सतत नर्तन-श्रम-कण बन खिले,- गगन म शत-शत तारक बिन्दु, धीर-गति-जल से पूरित हुअा- अतल नि सीम गगन का सिन्धु, नच उठे तारक वृन्द अनेक, नाचने लगे मुदित उडु-राज, राशिया नची, नचे नक्षत्र नाच उठा सब सौर समाज आकाश, पदन्यासो का गूंजा घोर, लोक-लोकान्तर से रव बहा, गहर गम्भीर, अछोर, अथोर । (६८) नच उठी घनी कुहू-कालिमा, नाचने लगी निशा घनघोर, अखिल ब्रह्माण्ड नृत्य-मय हुआ, रास-मडल का अोर न छोर , नृत्य-गति-चलित निशीथ - दुकूल बन गया पूर्ण वर्तुलाकार, कृत्स्न जगती के जीव अनेक फंस गए नृत्य मडलाकार, ऊम्मिला-लखन-हृदय-द्वय नचाने लगे सकल निखिल ब्रह्माण्ड अवश नच उठा, त्याग कर निज मूढाहकार । थिरक, ससार, १६०