पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१८०

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ऊम्मिला अरी कल्पने, विप्रयोग की कथा दुख-भरी गा दे, मेरी टूटी , शिथिल कलम से उसको त् लिखवा दे, दिखला दे वे दृश्य, हठीली, अरी, उठा दे हूक, तडपा दे हिय को चिरसगिनि, कर-कर के दो टूक, श्री ऊम्मिला, सुभट लक्ष्मण की विषम वेदना-तान,- आज छेड दे नए सिरे से, रो, तू निपट अजान । ५ त्रेता युग की कथा पुरानी, अकथित, अमथित, गेय, उसको कर के स्लवित द्रवित तू बन जा अमर, अजेय, प्यार भरे, मनुहार ढरे दृग, इन की मॉकी देख, अरी चली चल अवध, विपिन मे धरे लखन-पद-रेख , श्री अम्मिला स्वामिनी तेरी, लक्ष्मण तेरे देव, शरणागत को पार लगाना है दम्पति की टेव । इति श्री द्वितीय सर्ग श्रीमातृ ऊम्मिला चरण कमलार्पणमस्तु