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तृतीय सर्ग
ध्यान
सचित-शोक रखा है जिस के धुति विहीन आभरणो मे,
अलकावली-ग्रथित , श्री हत है कुडल जिसके कर्णो मे,
अकथित कथा कही जाती है जिस के कल-कल झरनो मे,
मत हो जा, हे नास्तिक मस्तक, उसके युग श्री चरणो मे।
तृतीय सर्ग
ध्यान
सचित-शोक रखा है जिस के धुति विहीन आभरणो मे,
अलकावली-ग्रथित , श्री हत है कुडल जिसके कर्णो मे,
अकथित कथा कही जाती है जिस के कल-कल झरनो मे,
मत हो जा, हे नास्तिक मस्तक, उसके युग श्री चरणो मे।