पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१८३

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तृतीय सर्ग ध्यान सचित-शोक रखा है जिस के धुति विहीन आभरणो मे, अलकावली-ग्रथित , श्री हत है कुडल जिसके कर्णो मे, अकथित कथा कही जाती है जिस के कल-कल झरनो मे, मत हो जा, हे नास्तिक मस्तक, उसके युग श्री चरणो मे।