पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१८६

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म्मिला फैला, सम है राम "आज अवध के राजमार्ग में आकुल कोलाहल यह वियोग की घटिका आई, - यह वन जाने की वेला, यह अचूक-सी हूक उठ रही है सब के अन्तस्तल मे, छल-छल छलक झलक झरती है बूदे दृग से पल-पल मे, अचल अचचल' अटल हिमाचल, धनुर्धारी, पट-परिवर्तन हुआ, हो गई वन जाने की तैयारी । ६ सिहासन से वह कुश-प्रासन, राजमहल से पर्ण-कुटी, / निर्जन-वन आवास बन जन-सकुलिता अवध छुटी, लुटी सम्पदा तीन लोक की तप के इशारे पे, वसुधा बलि-बलि गई राम के पद-नख न्यारे-न्यारे पे, सुकुमारता , सरलता, शुचिता, सीता चरणो मे बिखरी, तप-भावना सुलक्षण लक्ष्मण- पर न्योछावर हो निखरी ।