पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१८७

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तृतीय सर्ग ७ अकुलानी, अरुझानी वाणी, पानी-पानी हृदय ऑखो की बूंदो के मिस यह हिय का सचित प्यार चुना, भाषा थकी , हृदय धडके, औं' फडके अधरो के पुट वे, कण्ठ रुद्ध, मन क्षुब्ध हुआ है, रहे शब्द सब घुट-घुट वे, ऑखे मिची, खिची आहे, औ' सिहरी तन-रोमावलियॉ, श्री ऊम्मिला-नयन की ढरकी लखन-चरण मे अजलियाँ 1 बैठे लखन, पार्श्व में बैठी विमल ऊम्मिला खोई-सी, है चारो ऑखे कुछ स्वप्निल, कुछ-कुछ धोई-धोई सी, भीष्म-प्रतिज्ञ भाव मे अरुणा करुणा यह तल्लीन अथवा सागर में सरिता की सत्ता सज्ञा-हीन रह-रह एक दूसरे को यो लखते घटिकाएँ बीती, गिरी शिथिल ये भुज लतिकाएँ ऊपर को उठ-उठ, रीती ।