पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१८८

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म्मिला 1 1 8 लक्ष्मण के उन्नत ललाट पर रेखाये मण्डिता मानो हिमगिरि श्रृग-थू खला मेघ-धार-खण्डिता खचित भाल-रेखा मे जीवन की प्रहेलिका उलझ गई, आ-या कर कण्ठो मे अटकी हृदय-ग्रन्थियाँ कई-कई, मौन वेदना बही आह से, औ' नयनो स अरुण व्यथा, रुद्ध हिचकियो से निकली अति करुण वर्णनातीत कथा 1 १० लक्ष्मण रानी के लोचन द्वय, अरुण-करुण रस-रग रेंगे, उधर कठिन कर्त्तव्य-नाद मे लक्ष्मण-श्रवण-कुरग पगे, 1 दोनो नयन इधर मचले, वे दोनो श्रवण उधर मचले, विगलित करुणे | उमड, ठहर ओ' भीष्म प्रतिज्ञे, तू दो-दो गहरे हृदय-समुद्रो- । का मन्थन हो रहा कर्म-शीलता का, सनेह का, गठ-बन्धन हो रहा यहा । अचले, यहा, / -१७४