पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१९१

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तृतीय सर्ग जीवन की दोपहरी मे ही, सन्ध्या का आभास मिला, उजियाले मे अँधियाले को, बास मिला, आवास मिला, धूप-छाँह मिल गई अचानक, उद्भव बीच विनाश मिला,

  1. , प्रेम में मिला, मुक्ति मे-

अधवा, बन्धन-पाश प्रेम-योग म सिप्र-योग का क्या ही ऋमिक विकास मिला। जीवन की गहराई मे भी- अमिन हाम-उपहाम मिला । मिला, विकराला, स्नेहाम्बुधि मे नव वियोग की भडकी बडवानल-ज्वाला, खल-भल,खल-भल अतल-जल हुआ, उठी वेदना तडपे प्राण-मीन, अकुलाए- हिय-मन्थर, मन मथित हुआ, प्यार-प्रशान्त महासागर का विकल-विचल जल व्यथित हुआ, वीचि-विलास-जास्य की समगति असम, विषम, सम-हीन हुई, रति-जल-राशि वाष्प बन आई, मशय-सम्भ्रम-लीन 2