पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१९३

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तृतीय सर्ग आई , पाई, हिप की रणस्थली म और कर्तव्य निरे राजस-पात्विक गुण-बन्धन ये, जभे, मरे, गिरे कर्तव्यावहेलना औ प्राशकार पदस्खलन की नई-नई-सी, कई प्रेरणाए हिय-कामना विमाहन-लागी, सुन्दर शरद्-जुन्हाई-सी, नेह-सगाई, हिय लग आई, मन मोहिनी लुनाई सी । २० करुण-कहानी हिय-अरुझानी, छानी-मानी नही अकुलाती अॉखडियो से वह, पानी-पानी बनी, मथित हिचकियॉ, बचन-दीनता- का, कुछ सँग देने आई, निपट-धीरता ने, सयम ने अपनी सुध-बुध मन-पानस की मदिर हिलोरे- उमड-उमड आहे बरबस-सी, चढ धाई रही, बही, बिसराई, आई। कढ़ आई करुणा-सरिता 1 १७६