पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१९४

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ऊम्मिला आखो मे विषमय विषाद के- प्रजन की रेखा झलकी, छिटक पडी वेदना नयन से- अति गभीर अन्तस्तल की, हिय-शत-दल की हनकी-हलकी अाकुन, चचल गति छलकी, प्यासे अवलोकन से प्रकटी विषम वेदना पल-पल की, पलको में सस्मतिया धिर-घिर आई कई विगत कल की, लखन-म्मिला की वे अॉखे-- सरिता बनी लवण-जल की । जीवन का, २२ घूम गया नयनो के आगे एक चित्रपट स्मरण-गृङ्खलामो की कड़ियाँ बजा गई स्वर खन-खन का, कई मोद के, कई तोष के, कई पूर्णता के क्षण वे, घूम गए नयनो के आगे बन कर कॅकरीले कण वे, आज चुभ गई अॉखो मे वे सस्मृतियाँ बन गूल-अनी, नयनो की किरकिरी बन गई- पुष्प-राग की अमिय-कनी ! ।