पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१९७

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तृतीय सर्ग 7 कण्ठ ? जहाँ-तहाँ, अवश सात स्वरो का, स्वर-श्रुतियो का, ध्वनि-विन्यास विशुद्ध कहाँ अतुल-विपुल सताप-ताप से शुष्क अवरुद्ध यहाँ, कहाँ तान, लय, गति, अलवेली ? मुरज, मूर्च्छना कहाँ यहा सिसक हिचकियो का प्रारोहण- अवरोहण है स्वर-विधान, कल-गान हो गया, मूच्छित हिय के कम्पन से श्रवण रहे प्यासे के प्यासे- मौन-अवलम्बन २८ अश्रु-अलकृत युग कपोल की पाटल आभा कमनीया, सहसा कुछ श्यामला हो गई- वह शोभा अति रमणीया, गहन प्रेम-वात्सल्य-प्रणोदित लक्ष्मण-अधर-विचुम्बित वे,- श्री ऊम्मिला कपोल-युगल, अति- हुए स्फुरित अनुकम्पित वे, स्नेह-धार की प्रणालिकाए,- शतपत्रो की कलिकाए,- वे कपोल की युगल जोडियों,- V सिहर उठी दाये-बाये १८३