पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/१९८

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अम्मिला धरे मदुला, २६ लक्ष्मण क दक्षिण स्कन्ध पर वाम कपोल दक्षिण कर ग्रीवा मे डाले, 'सिसक रही ऊम्मिला कुला, विकट वीर, मतिधीर, लखन कुछ झिझके, कुछ अरुझाने से,- बाँध भुजानो मे अपना धन बैठ रहे अकुलाने से, यो आलिगन करती दीखी आकुलता से सुस्थिरता, ज्यो गुणमयी सुरति से लिपटी हो भावना विरति-निरता । ३० चचल भ्रू-विलास मरमाया, निपट प्रचचल भाव उठे, चचलता के सब साकेतिक सुस्पन्दन के भाव लुटे, दुग-नचलता-हट गया, लुटी दुकान इशारो की, क्या ही भीषण सेना उमडी भावो के बटमारो की उन नेनो में कहाँ इशारे ? सकेतो का होश जोश कहाँ ? हिय-दोष वहाँ, चित रोष वहाँ, सतोष कहाँ ? कहाँ ?