पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२०३

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तृतीय सर्ग दशरथ की पुत्र-वधू तुम विदेह-नन्दिनी ऊम्मिले, तुम तुम रिपुसूदन की भाभी, तुम- आर्य राम की अनुज-वधू, तुम तपस्विनी मात सुमित्रा की हो बहू मुहाग भरी, तुम हो निपट मुभट लक्ष्मण की, चिर माथिनि अनुराग-भरी, तुम मेरे दुर्धर्ष धनुष की प्राई हो, तनिक सुनो, आँखो मे भर क्यो यह उस्ता-धन लाई हो ? प्रत्यचा बन ४० ग्च ठहर जाओ, बलि जाऊँ, यो मत मुझे अधीर करो, बार-बार इन सुघड दृगो मे रह-रह कर मत नीर भरो, धीर धरो, मन अपने हिय को- चीर करो न्यारा-क्यारा, देखो तो, यह भीग गया है- मेरा उत्तरीय तनिक सुनो तो, मेरी रानी- मै बलि जाऊँ । सुनो जरा, अये, डिगी जाती है, देखो, मौन वेदना-परम्परा सारा, १८६