पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२०५

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तृतीय मर्ग नया, तापस राज छुटा, वनवास मिला, यह- परिधि छुटी, दिक्शूल गया, प्रिये, तलिक देवो तो, उमडा--- जीवन-सिन्धु अकूल वह महान अटवी-अत्वेपण वेश विशेष वहाँ, वह साहस, वह विपिन-समस्या, स्वावलम्व-सन्देश वहाँ, मै खोजूंगा तुम प्रसून को- उन जगल के शूलो मे, तुम्हे पुकारूँगा पद-पद की प्रति ठोकर की भलो मे । यह है योगायोग, विमाता तो एक बहाना है, उस विकराल विपिन मे जाकर, उसका गर्व ढहाना वन दुर्गमता, सहज अटन में, अहो-देवि, परिणत होगी, उस दुर्लघ्य विन्ध्य की चोटी राम-लखन पद नत होगी उत्तर-दक्षिण गठबन्धन करे हमारी जग वह देखे जिसको उस ने अब तक कभी नही देखा । पद-रेखा,