पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२१

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प्रथम सर्ग १५ सुपश्चिम द्वार बनवा कर, नृपति ने- समर्पित है किया यम को सुमति ने , कि मानो पथ दिखाया समय-गति ने, सुरति का हाथ पकडा या विरति ने । उधर है उत्तरीय-द्वार भारी, सुसेनापति षडानन ध्रुव प्रहारी- जिसे रक्षित किये रिपु-मान-हारी, भगाते है व्यथाए दूर सारी । इसे शुभ 'कात्तिकेय-द्वार' कह कर- नगरवासी सिहाते है निरन्तर , ध्वजा फहरा रही है यह मनोहर बताती है रणागन-मार्ग सत्वर । 1 नगर चहुँ ओर सुन्दर क्षेत्र सारे, मनोहर हरित-सा परिधान धारे, पवन सँग कर रहे है नृत्य प्यारे , कि मानो जलधि कल्लोलित हुआ, रे । १६ कही बैठे मुदित है भूमि-स्वामी, कही वे हो रहे वृषभानुगामी , कही गाएँ चराते है अकामी मधुर यह स्थान 'गोपुर-धाम' नामी । प