पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२१०

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अम्मिला उनके लिए सृष्टि, लय, स्थिति के प्रश्न अतीव परम्य बने, जन्म-मरण के गूढ तत्व ये उनके लिए अगम्य बने, अपरा, परा प्रकृति की लीला नयन न उनके देख सके, नैसर्गिक प्रक्रिया देख कर उनके यि धडकै, कसक, वज्र घोर उद्घोष रोषमय, यह झझानिल का झपन,- उनको स्तम्भित कर देता है चपल दामिनी का कम्पन । मूढ निरे, वे वनवासी, सतत-प्रवासी, तिमिर निवासी, काम विलासी वे क्या जाने- अक्षर-तत्व निगूढ निरे ? नही मानसिक जीवन उनका , आध्यात्मिकता वहा कहा ? भौतिकता-प्रसार फैला है केवल वन मे आज विजित करने उस भौतिक, दैहिक, शारीरिक बल को,- राम-लखन वन-गमन कर रहे सँग ले आत्म-ज्ञान-दल को। यहा-वहा,