पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२११

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तृतीय सर्ग मै कटिबद्ध हुआ, मात्रास्पर्श भाव है उनका, इन्द्रिय-रस मे अपनी ही प्रतिछाया से दे, डर कर छिन-छिन ऊब रहे, ईति, भीति, प्राशका, शका- से वे चिर शकित रहते, भय-सन्चार हृदय में उनके, वे उर मे कम्पित रहते , अभय दान देने को उनको, सुन्दरि, यह सन्देश आज मम सम्मुख सहसा ही सन्नद्ध हुआ। ५६ भूख लगी-आखेट कर लिया, प्यास लगी-जल-पान कष्ट किसे कहते हैं, यह तो- चोट लगी, तब जान लिया, शारीरिक वेदना हुई तो- रोए, चिल्लाए, प्रतीकार करने को बिगडे, कडके, फडके, कुछ झडपे, भय-पूरित, अज्ञान-पराजित, सतत विजित जीवन उनकी ग्रीवा मे है फन्दा- भय का, सतत मृत्यु-गुण का । किया, तडपे, उनका,