पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२१५

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ततीय सर्ग कारी, हम है नव-सन्देश-प्रचारक, हम नव-शख-ध्वनि शुद्ध लोक-सग्रह-कारी हम- नव विधान के अधिकारी, नवल ज्ञान-विज्ञान-वह्नि की, हम ज्वलन्त ज्वालाए है, हम दाहक, हम अनल वाहिनी- विकराला मालाए दीपक-दर्शक, तिमिर-विनाशक, इन्द्रिय शासक, मुक्त मना,- ज्ञान धर्म जग मे फैलाने, निकलेगे हम युक्त मना । ६४ सीय-राम पद-रेणु उडा कर पवन हुलस,सुख पायेगी, बह-बह अटवी मे वह जीवन- का सन्देश धर्म-भावना, अमल-कर्मरति, ज्ञान-प्रेरणा वन की अधियाली वीथी निज तिमिर-आवरण त्यागेगी, धीरे-धीरे वहा प्रसारित होगी सुसस्कृता भाषा, बन्धन टूटेगे, जागेगी- विमल मुक्ति की अभिलाषा । सुनाएगी, जागेगी, २०१