पृष्ठ:ऊर्म्मिला.pdf/२१६

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अम्मिला होगी, धन्य अरण्य निवासी होगे, हम होगे कृतकृत्य, प्रिये, निबिड तिमिर मे ज्ञान-शिखा का होगा निर्मल नृत्य, प्रिये, नाचेगा आलोक निराला, वन-वीथिया मुदित अन्धकार-पूरित हृदयो मे पावक-किरण उदित होगी, झाड और भखाड कॅटीले, ऊँचे-ऊँचे भूधर वे- आलोकित होगे प्रकाश से अतल-वितल-से गह्वर वे । खेला; सधन निशा, खर-रश्मि-कृशा बन, होवेगी प्रातर्वेला, काली घडिया, ऊषा-क्षण बन दीखेगी करती विपिन-वासियो के सोते से भाव विहगम चहकेगे, हिय-शतदल खिल जायेगे, मन- पाटल-दल-सम महकेगे, मुसकाती, हँसती आएगी ऊषा निदियारे वन में, यह सुषमा प्रतिबिम्बित होगी, राम-चरण-नख-दर्पण मे 1 २०२